गुर्जर समाज मे बढ़ा बिना दहेज की शादी करने का चलन

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नई दिल्ली : पुराने समय में जब किसी लड़की की शादी की जाती थी तो परिवार के मुखिया उसे कुछ ज़रूरी सामान इसलिए दिया करते थे कि वो अपने जीवनसाथी के साथ नयी ज़िन्दगी शुरू करे ताकि उसको अपना परिवार चलाने के लिए आम ज़रूरी सामान की ज़रूरत के लिए परेशान न होना पड़े इस रिवाज़ को कुछ इस तरह भी समझा जाता था की ये उसका हक है क्योकि वो अब दुसरे घर (ससुराल) जा रही
है तो वो उस घर की हो जाएगी और (मायका) उसका घर नहीं रहेगा इसलिए उसे इतने साल उस परिवार में रहने का हक था जो उसे सामान की शक्ल में दे दिया गया कुछ जगह ये भी मान्यता थी कि अगर पति की अकिस्मत मौत होती है तो लड़की को परिवार चलाने में कुछ तो सुविधा रहे और इस तरह मायका से मिलने वाला ये वो ज़रूरी सामान हुआ करता था जेसे खाने के बर्तन, बिस्तर इत्यादि लेकिन रफ्ता रफ्ता ये एक रस्म बन गयी और ये रस्म दुनिया के अधिकांश धर्मो में थी जेसे जेसे समाज ने विकास किया इंसानों की ज़रूरते बढ़ने लगी और इस आधुनिक युग में इंसान की तंग मानसिकता और लालची मिज़ाज के चलते ये एक बीमारी बन गयी और परिवार चलाने आने वाली लड़की को दहेज़ व मोटी रकम लाने वाली वस्तु बना दिया गया लड़का अपनाने से शुरू होकर मंगनी से लेकर दिन तारीख और शादी तक हर मौके पर लड़के वाले ललचाई नजरो से पैसा मिलने की उम्मीदे लगाये रहते है और इस तरह से एक मदद जो दहेज़ के रूप में की जाती थी एक लालच बन गया और मदद करने वाला ज़िम्मेदार बन गया जिसे हर कीमत पर अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए दुनिया भर से क़र्ज़ लेकर शादी और शादी की रस्मे करनी पड़ती है और एक बेटी के बाप होने का मतलब ज़िन्दगी भर कमाना कम पड़ने पर क़र्ज़ लेकर बेटी की शादी करना उसके बाद क़र्ज़ उतारने के लिए मेहनत करना और हर त्यौहार पर बेटी के घर त्योहारी की शक्ल में खाने पीने का कच्चा सामान व कपडे पहुचना बन गया हलाकि ये सामाजिक कुरीति दहेज़ प्रथा भारतीय समाज की संस्कृति में शामिल है दहेज़ देने का चलन प्राचीन काल से अब तक बदस्तूर ज़ारी है और इस सामाजिक कुप्रथा को भारत में व्याप्त सभी धर्मो के धर्मगुरूओ का भी मूक समर्थन प्राप्त है भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा महामारी का रूप धारण कर चुकी है और इस महामारी में मरने वालो की संख्या दिन ब दिन बढती जा रही है

तथाकथित धर्म व समाज के ठेकेदार इस मुद्दे पर पुरी तरह से खामोश होकर इस कुप्रथा का समर्थन करते नज़र आते है हाला की समाज की आपसी समझ के ज़रिये कुछ जगह इस प्रथा का सामूहिक बहिष्कार भी किया जा चुका है ।

अभी कल ही एक गुर्जर परिवार में हुई एक शादी लड़की के माता पिता का नाम

● श्री ब्रहम सिंह नागर इनकी धर्मपत्नी कुसुम नागर रोहिणी दिल्ली निवासी ।
जिन्होंने बताया कि लड़के वालों ने एक रुपया लेके शादी की है और इस ।
कुप्रथा का बहिष्कार किया है।

● लड़के के पिता ।
श्री मंदिर जी निवासी ममूरी मेरठ जो कि अब दिलशाद गार्डन में रह रहे है ।

● मानसी चौधरी लड़की का नाम ।
●आयुष चौधरी लड़के का नाम ।


भारती नागर जो लड़की की बहन है उनसे बात करके हमने सारी बाकी की जानकारी ली और उनके परिवार की तरफ से पूरे समाज के लिए एक छोटा सा संदेश ।

कुछ बातों को अपना कर समाज से इस बुराई को मिटाया जा सकता है ।

●अपनी बेटियों को शिक्षित करें।
●उन्हें अपने कैरियर के लिए प्रोत्साहित करें ।
●उन्हें स्वतंत्र और जिम्मेदार होना सिखाएं।
●अपनी बेटी के साथ बिना किसी भेदभाव के सामान्य व्यवहार करें।
●दहेज देने या लेने की प्रथा को प्रोत्साहित न करें।

इसलिये शिक्षा एवं स्वतंत्रता एक शक्तिशाली एवं मूल्यवान उपहार है जो आप अपनी पुत्री को दे सकते हैं। बदले में यह उनको वित्तीय रूप से सुदृढ़ होने में मदद करेगा तथा परिवार के लिए योगदान देने वाला सदस्य बनाएगा, उसे परिवार में आदर तथा सही ओहदा देगा।
इसलिए अपनी पुत्री को ठोस शिक्षा प्रदान करना तथा उसे अपनी पसन्द का करियर चुनने के लिए प्रोत्साहित करना वह श्रेष्ठ दहेज है जो कोई भी माता-पिता अपनी पुत्री को कभी भी दे सकते हैं।

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